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"सर पर पल्ला रख बहु कोई आएगा तो क्या कहेगा", किचन से सासु माँ की आवाज़ आयी । नयी नवेली दुल्हन बानी सरोज ने गुस्से से साड़ी से सर पर पल्लू ढका ।
अमीर माँ बाप की इकलौती बेटी सरोज एक खुली सोच वाले परिवार से थी जिसने कभी अपनी माँ को सर पर साड़ी रखे हुए नहीं देखा था ।
अनुज से शादी के बाद अचानक से सास से तोके जाने पर उसको अच्छा नहीं लग रहा था ।
मन में कई सवाल आ रहे थे, "शायद माँ ने सच कहा था अनुज एक छोटे शहर का लड़का हे, गुड़िया उसके साथ ज़िन्दगी काटना आसान नहीं होगा । इस प्यार को कई इम्तिहानो से गुज़ारना होगा ।"
इतना सब सोच ही रही थी सरोज , के अचानक से ससुर जी कमरे में आ गए । सरोज को सोफे पर बैठा देख कर थोड़ा सा गाला साफ़ करने लगे , पल भर में ही नन्द जी ने आकर कहा, "भाभी खड़ी हो जाईये , आप घर के मर्दों के सामने ऊपर नहीं बैठ सकती , या फिर ज़मीन पर आसन पर बैठ जाइये ।"
"उफ़, ये कहाँ आ गयी में । अनुज ने मुझे पहले कुछ क्यों नहीं बताया । हम ५ साल से साथ थे । वो मुझे बहुत ही अच्छे से जनता था । फिर कहा गलती हो गयी हम दोनों को एक दूसरे को समझने में । नहीं अनुज में ये नहीं हूँ । शायद इन ५ सालो में मैंने तुमको अपने विचार बताये ही नहीं, शायद तुमने कभी मुझसे पूछा ही नहीं मुझे कैसी ज़िन्दगी चाहिए, शायद मैंने अपनी राये , अपनी सोच तुमको बताई ही नहीं ।" सोचते सोचते सरोज को आधा घंटा हो गया वही खड़े खड़े ।
"अनुज से बात करूँ या नहीं करूँ , आज शादी का दूसरा ही दिन है , फिर हमे हनीमून पर भी जाना है , कहीं इन सब बातों से हमारा रिश्ता ख़राब न हो जाये ।" अनुज से बहुत प्यार है सरोज को शायद इसीलिए इतना सोच रही है "ये छोटी छोटी बातें है इन पर क्या रियेक्ट करना है ।
हनीमून से लौटने के बाद , अनुज ने कहा तुम १ महीना यही रहो , मैं तुमको वापस आकर ले जाऊंगा । पहले तो सरोज ने हाँ कह दिया, पर फिर सासु माँ की और नन्द की बातें याद आयी तो उस से रहा ना गया । "अनुज , मैं तुम्हारे साथ ही चलूंगी , तुम मुझे मेरी मम्मी के यहाँ ड्राप कर देना । जब तुम सेटल हो जाओ, तब मुझे आकर ले जाना ।" सरोज ने अनुज से थोड़ा सा डरते हुए कहा ।
अनुज ने तुरंत ही मन कर दिया । नहीं सरोज ये मुमकिन नहीं है , तुम अगर इतनी जल्दी चली जाओगी तो समाज क्या कहेगा , मम्मी पापा की कितनी बदनामी होगी यहाँ पर । में समझ रहा हूँ , यहाँ का माहौल थोड़ा अलग है और तुमको एडजस्ट होने में समय लगेगा , पर मैं तुम्हारे साथ हूँ , तुम खुद को कभी अकेला मत समझना । यहाँ का माहौल एकदम अलग है और तुमको इसकी आदत नहीं है । मैं सब ठीक क्र दूंगा, बस तुम्हारा भरोसा और साथ चाहिए ।"
आज शादी को ५ साल हो चुके हैं , और सरोज अपने मायके से ज़्यादा ससुर आती है । अनुज क समझाने के बाद उसके माँ पापा ने नयी सोच को जो अपना लिया है । आज सरोज उनकी बहु नहीं, उनकी बेटी है । आज सरोज की सासु माँ समाज और घर की और औरतो को समझती है, "हमारी बहु ही हमारी बेटी है, आज अनुज से ज़्यादा हमारा ख्याल रखती है । अनुज के पास तो हम लोगो के लिए वक़्त ही नहीं है , पर कोई दिन नहीं जाता जिस दिन सरोज हमसे बात नहीं करती, या हमारा हाल चाल नहीं लेती । सच में कोई बहुत अच्छे कर्म किये होंगे जो सरोज जैसी बहु मिली है ।"
काश, सबकी ज़िन्दगी इतनी ही आसान हो जाये , सबको सरोज जैसी बहु , अनुज जैसा पति और उसके माता पिता जैसे सास ससुर मिले ।
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